उन दो FIR की कहानी, जिसने आडवाणी, जोशी और उमा को घेरे में ला दिया

नई दिल्ली बाबरी विध्वंस (Babri Masjid Faisla) पर 28 साल बाद लखनऊ की सीबीआई अदालत आज अपना फैसला सुनाने जा रही है। कोर्ट 6 दिसंबर 1992 को दर्ज किए उन दो FIR को आज अंजाम तक पहुंचाएगी जिसके कारण बीजेपी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी (), मुरली मनोहर जोशी (), कल्याण सिंह () और उमा भारती () समेत कुल 49 आरोपी घेरे में आए थे। सुनवाई के दौरान 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है। बाबरी विध्वंस पर वो दो FIR दरअसल, 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन राम जन्मभूमि पुलिस स्टेशन, अयोध्या में दो FIR दर्ज कराए गए थे। क्राइम नंबर 197/1992 और क्राइम नंबर 198/1992। इसके अलावा जांच के दौरान 47 और केस दर्ज किए गए थे। केस नंबर 197/1992 6 दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि पुलिस स्टेशन के SHO पीएन शुक्ला ने शाम 5 बजकर 15 मिनट पर लाखों कार सेवकों के खिलाफ सेक्शन 395 (डकैती), 397 (डकैती या डाका जिसके कारण मौत की आशंका), 332, 337, 338 (बड़ा जख्म) 295 (किसी धर्मस्थल को किसी समुदाय विशेष को बेइज्जत करने के लिए नुकसान पहुंचाना), 297 (किसी धर्मस्थल में घुसना) और 153-A (विभिन्न धर्मों के बीच वैमनस्य फैलाना) इस FIR में घटना के वक्त का जिक्र दोपहर 12 से 12:15 का किया गया था। केस नंबर 198/1992 इसी दिन दूसरी FIR राम जन्मभूमि पुलिस आउटपोस्ट के इंजार्च गंगा प्रसाद तिवारी ने शाम 5:25 मिनट को यह FIR दर्ज कराई थी। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि करीब सुबह 10 बजे जब वह कार ड्यूटी पर तैनात थे और विश्व हिंदू परिषद कार सेवा आयोजित कर रही थी उसी वक्त उन्होंने देखा कि लालकृष्ण आडवाणी, मुलरी मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, विनय कटियार, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और साध्वी रितंभरा राम कथा कुंज के डायस पर बैठे थे और कार सेवकों को अपने भाषण से उकसा रहे थे। इसके परिणास्वरूप कार सेवक आवेश में आकर विवादित बाबरी ढांचे को ढहा दिया। इस केस को क्राइम नंबर 198 के रूप में दर्ज किया गया। आरोपियों पर भड़काऊ भाषण देने समेत कई अन्य आरोप के तहत मुकदमे दर्ज किए गए। 10 दिसंबर 1992 को CB-CID को केस ट्रांसफर FIR नंबर 197/1992 और 198/1992 को पहले यूपी सरकार ने CB-CID को ट्रांसफर किया। केस नंबर 198 के तहत आडवाणी और अन्य नेताओं को बाबरी विध्वंस के दो दिन बाद 8 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया। 13 दिसंबर 1992 को सीबीआई को ट्रांसफर हुआ केस नंबर 197 13 दिसंबर को केस नंबर 197 को सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया जबकि केस नंबर 198 की जांच CB-CID के जिम्मे ही रही। 27 फरवरी 1993 CB-CID की चार्जशीट 27 फरवरी को CB-CID ने 198/1992 केस मामले में ललितपुर कोर्ट में चार्जशीट फाइल की। एजेंसी ने सेक्शन 153-A, 153-B, 505, 147 के तहत यह चार्जशीट दाखिल की थी। स्पेशल जज ने 1 मार्च को इस मामले पर संज्ञान लिया। 9 सितंबर 1993 को केस नंबर 197 का ट्रांसफर 9 सितंबर को केस नबंर 197/1992 और अन्य 47 केसों को लखनऊ की स्पेशल केस भेज दिया गया। हालांकि केस नंबर 198/1992, जिसमें बड़े नेताओं के नाम थे उसका ट्रांसफर नहीं किया गया और इसकी सुनवाई रायबरेली में ही होती रही। 9 सितंबर 1993 को सीबीआई का बड़ी अपील 9 सितंबर के ही दिन सीबीआई ने रायबरेली ट्रायल कोर्ट से केस नबंर 198/1992 की फिर से जांच की अनुमति मांगी और कोर्ट ने 10 सितंबर 1993 को शीर्ष जांच एजेंसी को इसकी इजाजत दे दी। 5 अक्टूबर 1993, यहां से घेरे में फंसते चले गए आडवाणी, जोशी उमा.. सीबीआई ने 5 अक्टूबर को केस नंबर 197 और 198 समेत सभी 49 केसों को मिलाकर एक कंपोजिट चार्जशीट तैयार कर लखनऊ के स्पेशल कोर्ट में पेश किया और अदालत को बताया कि सभी केस एक ही घटना के हैं। चार्जशीट में 40 लोगों के नाम थे, जिनमें ज्यादातर वरिष्ठ राजनेता था। इसके अलावा केस नंबर 1998 में 8 और नाम को शामिल किया गया। इसी में आडवाणी और अन्य बड़े नेताओं के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया गया।


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उन दो FIR की कहानी, जिसने आडवाणी, जोशी और उमा को घेरे में ला दिया उन दो FIR की कहानी, जिसने आडवाणी, जोशी और उमा को घेरे में ला दिया Reviewed by IB CITY on 9:47 AM Rating: 5

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