नई दिल्लीआज अगर पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) जिंदा होते तो बाबर विध्वंस केस में बुधवार को आए फैसले () से वो गदगद होते। उनकी खुशी की वजह विशेष सीबीआई अदालत का वह ऑब्जर्वेशन होता जिसमें जज एसके यादव ने कहा कि घटना पूर्वनियोजित नहीं थी। नरसिम्हा राव पर 6 दिसंबर, 1992 को हुए बाबरी विध्वंस की साजिश का साझीदार होने का आरोप लगा था। VHP और UP सरकार पर था भरोसा राव इस आरोप से बहुत दुखी थे जिसका इजहार उनके इस बयान में होता था कि उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (VHP)और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के वादों पर भरोसा किया था जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी शांतिपूर्ण आंदोलन का भरोसा दिलाया था। राव ने अपनी पुस्तक 'अयोध्या 6 दिसंबर, 1992' में विस्तृत आधिकारिक बातचीत और वीएचपी नेताओं के साथ चर्चाओं के रिकॉर्ड्स का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने जो भी कदम उठाया, वो साफ-सुथरे मन से उठाया। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को हुआ जबर्दस्त फायदा हालांकि, उन्हें और उनकी कांग्रेस पार्टी को बाबरी विध्वंस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी जबकि बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के प्रतिस्पर्धी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को जबर्दस्त लाभ हुआ। 6 दिसंबर को अयोध्या में केंद्र की तरफ से अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती नहीं किए जाने से राव पर लगे आरोप को ताकत मिली। लेकिन, एक पक्ष यह भी है कि अगर कारसेवकों के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करने से न केवल अयोध्या बल्कि पूरे देश में हिंसा का बड़ा खतरा था। बिल्कुल दुखी और उदास थे राव घटना के दिन जिन दिग्गज नेताओं ने राव से मुलाकात की थी, उन सबने तत्कालीन प्रधानमंत्री को बिल्कुल उदास और दुखी पाया था। एक नेता ने कहा, 'वो ऐसे दिख रहे थे जैसे किसी बस ने उन्हें धक्का दे दिया हो।' 6 दिसंबर, 1992 को उनके दफ्तर के आसपास लोग मंडराने लगे थे लेकिन राव ने बिल्कुल चुप्पी साधे रखी थी। फिर टेलीवीजन पर देश के नाम संबोधन में उन्होंने कहा कि मस्जिद दोबारा बनाई जाएगी। बाद में राव ने कहा कि उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि मस्जिद दोबारा कहां बनाई जाएगी। क्या माहौल को भांप नहीं पाए थे राव? पूर्व गृह सचिव माधव गोडबोले जैसे कुछ लोगों का कहना है कि बाबरी को ढहने से बचाया जा सकता था। मस्जिद के आसपास लाखों लोगों की भीड़ जमा होने देने का निर्णय खतरे से खाली नहीं था लेकिन राव को शायद लगा कि भगवा ब्रिगेड सुप्रीम कोर्ट से किए वादे के खिलाफ नहीं जाएगा। वो शायद यह नहीं देख सके कि लोग कानून को अपने हाथों में लेने लगे थे। राव के डॉक्टर का बयान राव के डॉक्टर और मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री को नाड़ी (पल्स) और रक्तचाप (बीपी) को नियंत्रित करने की दवा दी है। 6 दिसंबर, 1992 की घटना ने राव को मानसिक और शारीरिक स्तर पर कितना झकझोर दिया था, इससे बड़ा सबूत शायद और कुछ नहीं हो सकता है।
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पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जीवित होते तो बाबरी फैसले पर जरूर मुस्कुराते!
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10:47 AM
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