'दो गज दूरी' के चलते बदला अंग्रेजों का सिस्टम

टीएन मिश्र, लखनऊ देशभर में भले ही लॉकडाउन था लेकिन रेलवे में स्पेशल ट्रेनों व मालगाड़ियों का संचालन लॉकडाउन में भी होता रहा। ऐसे में पटरियों के निरीक्षण का काम भी जारी था। उत्तर रेलवे ने रेल अफसरों के निरीक्षण के लिए पटरियों पर चलाई जाने वाली पुश ट्रॉली दौड़ाने वाले चार ट्रॉली मैनों के बीच में सोशल डिस्टेंसिंग न होने की समस्या का विकल्प निकाल लिया है। अब पुश ट्रॉली की जगह पैडल ट्रॉली से अफसर निरीक्षण कर सकेंगे, जिससे ट्रॉली मैन उसे खींचने के लिए पटरियों पर दौड़ने के बजाए ट्रॉली पर बैठकर पैडल से ऑपरेट कर सकेंगे। अंग्रेजों के वक्‍त से चला आ रहा सिस्‍टमअंग्रेजी हुकूमत के समय से रेलवे में अफसरों के निरीक्षण के लिए पुश ट्रॉली का सिस्टम चला आ रहा था। अधिकारी ट्राली पर बैठते हैं और चार ट्रालीमैन उसे धक्का देते हुए पटरियों पर दौड़ाते हैं, लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बाद ट्रालीमैनों ने सोशल डिस्टेंसिंग न होने से ट्रॉली चलाने में हीलाहवाली करने लगे। इसकी जानकारी जब एडीआरएम अमित श्रीवास्तव व सीनियर डीईएन को-ऑर्डिनेशन सुधीर सिंह को हुई तो उन्होंने उसका विकल्प खोजा। उन्होंने उसका डिजाइन तैयार किया, जिसमें लोहे व लकड़ी की बनी ट्रॉली की जगह स्टेनलेस स्टील की ट्रॉली बनाने की प्लानिंग की गई। प्लानिंग को अमलीजामा देने के लिए दोनों अफसरों ने स्मॉल ट्रैक मशीन डिपो के अश्वनी नायक को जिम्मेदारी सौंपी। 200 किलो कम हो गया ट्रॉली का वजनस्मॉल ट्रैक मशीन डिपो के इंचार्ज अश्वनी नायक ने एडीआरएम के आदेश के बाद कंवेंशनल पेडल ट्रॉली बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने डिपो में ही स्टील की सीट मंगाकर उसे डिजाइन के अनुसार कटवाकर उसमें साइकल का डबल पैडल सिस्टम लगाया गया, जिससे ट्रॉली चलाने के दौरान दो ट्रैकमैन आराम से गद्दी पर बैठकर पैडल से ट्रॉली चला सकें। बार-बार टच हो जाते थे हाथ-पैरअभी ट्रॉली का वजन करीब पौने तीन कुंतल होने पर जब ट्रेन आने वाली होती है तो चार ट्रॉलीमैनों को उसे पटरी से हटाने में काफी कशक्कत करनी पड़ती थी। इसके अलावा व ट्रॉली पर बैठे अधिकारी के पास से ही उसे धक्का देते थे जिससे उनके हाथ व पैर बार-बार टच हो जाते थे। जिसमें अफसर भी असहज महसूस करते थे। अब 75 किग्रा वजन होने से पटरी से ट्रॉली उतारने व दोबारा रखने के साथ ही उसे चलाने में काफी आसानी होगी। इसके अलावा कर्मचारियों व अधिकारियों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग भी बनी रहेगी। मैनपावर भी हुआ कमकंवेंशनल पेडल ट्रॉली बन जाने से अब चार ट्रॉलीमैनों की जरूरत भी खत्म हो गई है। अफसरों की मानें तो अब महज दो ट्रॉलीमैन ही दो से लेकर तीन अफसरों को बैठाकर आराम से ट्रॉली चला सकेंगे। इससे रेलकर्मियों को भी राहत मिलेगी। कोराना काल में वह भी रोस्टर के अनुसार काम कर सकेंगे।


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