अयोध्या: SC में चढ़ावा और पजेशन पर दलीलें

नई दिल्ली में अयोध्या मामले की लगातार सुनवाई चल रही है। 12 वें दिन सुनवाई के दौरान के वकील ने दलील पेश की। इस दौरान निर्मोही अखाड़ा ने दलील दी कि हम देव स्थान का मैनेजमेंट करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं। अखाड़ा के वकील ने कहा, जन्मस्थान का पजेशन न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड दो दिया जा सकता है न ही पुजारी को। यह केवल जन्मस्थान के कर्ता-धर्ता को दिया जा सकता है और निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का देखरेख करता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान हुई बहस को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'आप दो मुद्दों पर फोकस करिए। पूजा कैसे होगी यानी उसका नेचर क्या होगा और दूसरा कि आप बाहर या भीतर कहां पूजा करना चाहते हैं? जस्टिस अशोक भूषण: आप अपने दस्तावेज में वह पार्ट पढ़ें जिससे आप मंदिर व जन्मस्थान के मैनेजर का अधिकार साबित कर सकें। निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन: ठीक है मैं कोशिश करूंगा। (गवाह राजा राम पांडेय का बयान पढ़ते हुए) गवाह पांडेय रामजन्मभूमि के पास रहते थे और उस इलाके में 1934 में दंगा भड़का था। गवाह का बयान था कि उसने देखा था कि मुस्लिमों ने जन्मभूमि वाले इलाके में डेड बॉडी को दफनाया था और वहां उसने राम लला और उनके लकड़ी के सिंहासन को देखा था। सरकार ने जब धार्मिक स्थान की पहचान की थी तब अयोध्या के जन्मस्थान पर बना मंदिर भी उसमें शामिल था। यह पहचान 1900 में हुई थी। सुशील कुमार जैन: वहां पत्थरों पर हनुमान की तस्वीर बनी मिली थी। जस्टिस एसए बोबड़े: आप क्या कहना चाहते हैं? सुशील जैन: हम कहना चाहते हैं कि जहां तक हमारे शेबियत अधिकार (देवस्थान के मैनेजर के तौर पर अधिकार) का सवाल है और वहां के पजेशन का सवाल है तो इस बारे में हिंदू पक्षकारों के साथ कोई जिरह नहीं हुई थी। हमारी दलील और स्टैंड देवता के विपरीत नहीं माना गया है। जस्टिस बोबडे: आपने कहा था कि आप मालिकाना हक नहीं मांग रहे हैं और मालिकाना हक का दावा नहीं है। अगर ऐसा है तो आपको पूजा करने से किसी ने नहीं रोका। आप क्या चाहते हैं? सुशील जैन: हम वहां का मैनेजमेंट चाहते हैं। हम पूजा करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि पूजा हम करें। जस्टिस बोबडे: क्या बाकी के अधिकार आप नहीं चाहते? यानी पूजा के अलावा और कुछ नहीं चाहते? सुशील जैन: नहीं। देवस्थान के देखरेखकर्ता यानी शेबियत के कुछ कर्तव्य होते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़: आप कहना चाहते हैं कि आप पूजा के चढ़ावा पर अपना अधिकार रखते हैं? सुशील जैन: बिल्कुल सही। जस्टिस बोबडे: और आप क्या चाहते हैं? सुशील जैन: पजेशन। जस्टिस बोबडे: हम आपका बयान रेकॉर्ड कर रहे हैं। अगर दूसरी पार्टी मांगेगी तो आप साक्ष्य दीजिएगा। सुशील जैन: दूसरा पक्ष विवाद करेगा लेकिन हिंदू पक्षकार नहीं। देवकी नंदन दास ने कहा था कि उन्हें अभिराम दास और परमहंस रामचंद्र दास से सूचना मिली थी कि निर्मोही अखाड़ा मैनेजमेंट करता था। सुशील जैन: ऐसे में हमारा देवस्थान पर देखरेख का अधिकार यानी शेबियत का अधिकार परमहंस भी स्वीकार करते हैं फिर देवकी नंदन अग्रवाल भी स्वीकार करते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़: मिस्टर जैन आप हमें शेबियतशिप (मैनेजमेंट के अधिकार) को दिखाएं। जस्टिस बोबडे: आप कैसे मैनेजमेंट का अधिकार साबित करेंगे अगर वहां नमाज हुई थी? जस्टिस चंद्रचूड़: मिस्टर जैन आप अपनेआप को मंदिर के देखरेख वाले शेबियतशिप राइट तक सीमित रखें और आप उसे साबित करें। सुशील जैन: (इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पढ़ते हुए) जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने फैसले में कहा है कि राम चबूतरा पर मूर्ति थी जहां पूजा होती थी और उसे निर्मोही अखाड़ा मैनेज करता था। इस बात पर कोई हिंदू पक्षकार विवाद नहीं करता। सुशील जैन: हम आपको वे दस्तावेज दिखा रहे हैं जिससे ये संकेत मिलता है कि रेकॉर्ड में निर्मोही अखाड़ा का नाम है। जस्टिस बोबडे: लेकिन इन दस्तावेजों से ये संकेत नहीं मिल रहे हैं कि शेबियत राइट आपका हो। सुशील जैन: माइ लॉर्ड, 1982 तक यानी जब तक डकैती नहीं हुई थी, भारी मात्रा में दस्तावेज वहां मौजूद थे। लेकिन गजेटियर्स से ये संकेत मिलता है कि हमारा वहां पजेशन था। हिंदू की संपत्ति का मतलब निर्मोही से है। हमें देवता के मालिकाना हक पर कोई संदेह नहीं है। हम उनके नेक्स्ट फ्रेंड के दावे पर प्रतिवाद करते हैं। जन्मस्थान का पजेशन न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड दो दिया जा सकता है न ही पुजारी को। यह केवल जन्मस्थान के मैनेजमेंट करने वाले को दिया जा सकता है और निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का मैनेजमेंट करता (शेबियत) है। देवता के नेक्स्ट फ्रेंड भी कह चुके हैं कि वह पुजारी नहीं हैं।


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